31 जनवरी, 2013

भीगे ख़्वाब की बूंदें - -

समा वो तारों भरा, बेरहम रात ने
जाते जाते यूँ उलट दी, कि 
कोई निशां ए दरार 
नहीं बाक़ी, 
दूर तक बिखरे हैं क़तरा ए शबनम 
या मेरी आँखों से टूटे हैं कुछ 
भीगे ख़्वाब की बूंदें,
सीने में अब 
तलक 
रुके रुके से हैं, तेरी लब से छलके -
हुए कुछ नूर ए ज़िन्दगी, या 
उम्र भर तड़पने का 
अज़ाब दे कोई,
सूरज !
शायद है रहनुमा तुम्हारा, यहाँ इक 
अँधेरा है बेकरां मुसलसल - -
* * 
- शांतनु सान्याल 

समां - आकाश 
अज़ाब - अभिशाप 


1 टिप्पणी:

  1. तेरे गुलशन के सहन की गुलो-चाँदनी हूँ..,
    मेरे हमदम ए हमराज मेरे..,
    वो गुलेरान वो गुल रंग..,
    वो गुल मै ही तो हूँ..,
    हाँ मैं ही हूँ..,
    शम्मे-रुखसार पे मे शबनम की हँसी हूँ..,
    ए मेरी पाकीज़ा मुहब्बत..,
    ए मेरी मुक़द्दस वफ़ा..,
    तेरी ही नजर नूरे-
    जिंदगी हूँ..,
    मे तेरे पाक दामन की सफ्फे-हस्ती में हूँ..,
    तेरी दिल सोज़े-अजीज हूँ अजाब नहीं हूँ.....


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