31 जनवरी, 2013

भीगे ख़्वाब की बूंदें - -

समा वो तारों भरा, बेरहम रात ने
जाते जाते यूँ उलट दी, कि 
कोई निशां ए दरार 
नहीं बाक़ी, 
दूर तक बिखरे हैं क़तरा ए शबनम 
या मेरी आँखों से टूटे हैं कुछ 
भीगे ख़्वाब की बूंदें,
सीने में अब 
तलक 
रुके रुके से हैं, तेरी लब से छलके -
हुए कुछ नूर ए ज़िन्दगी, या 
उम्र भर तड़पने का 
अज़ाब दे कोई,
सूरज !
शायद है रहनुमा तुम्हारा, यहाँ इक 
अँधेरा है बेकरां मुसलसल - -
* * 
- शांतनु सान्याल 

समां - आकाश 
अज़ाब - अभिशाप 


29 जनवरी, 2013

इक अदद चेहरा - -

मुखौटों की भीड़, और    इक अदद ख़ालिस चेहरे 
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान 
दरिया की सतह पर, अक्स 
नाख़ुदा का उभरना !
हर एक मोड़ 
पे हैं भरम जाल, कौन है ख़ून इशाम और कौन 
मसीहा, फ़र्क़ नहीं आसां, कि हर नुक्कड़ 
की दीवार पर लिखे हैं, ग़ैर वाज़ी 
फ़लसफ़े के लुभावने 
इश्तहार !
हर शख्स दिखाता है यहाँ आसमानी बाग़, हर 
क़दम पे हैं शिफ़र की सीड़ियाँ, तै करना 
है ख़ुद को बहोत सोच समझ कर,
ये वजूद नहीं कोई 
नीलामी का 
मज़मून,
कि अब तलक ज़िन्दा है इक अदद  ज़मीर मेरा,
* * 
- शांतनु सान्याल 
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ख़ालिस - शुद्ध 
बहरान दरिया - आंदोलित नदी 
नाखुदा - मल्लाह 
ख़ून इशाम - रक्त पिशाच 
मज़मून - नमूना 
ग़ैर वाज़ी - अस्पष्ट 
शिफ़र - शून्य 
Desert Bloom - no idea about painter 

27 जनवरी, 2013

क़रार ताल्लुक़ - -

वो सभी चेहरे, जाने पहचाने, लगे पहलु बदलने,
जब ढलती धूप ने मुझसे, क़रार ताल्लुक़ 
तोड़ लिया, इक अँधेरा है मेहरबां 
अपना, जो निभाता है 
अहद ए क़दीम 
बारहा,
वो सदाएँ जिनमे थीं कभी तासीर ज़िन्दगी, न 
जाने क्या हुआ, वादियों तक जा कर 
फिर कभी न लौट पायीं, शायद 
सुबह ओ शाम के दरमियां 
थे सदियों के रुकावटें,
इक इंतज़ार 
बेशुमार,
और न आने के बहाने हज़ार, कि ज़िन्दगी -
अब दर्द को दवा में तब्दील कर 
चली है आहिस्ता - -
आहिस्ता !
- शांतनु सान्याल 
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painting by artist Paul Wolber ...

22 जनवरी, 2013

इक ख्वाहिश - -

तहलील तो हो जाऊं, ग़र सीप सा दिल 
मिले कोई, एक मुद्दत से हूँ लिए 
सीने में ख़्वाब अबरेशमी,
क़तरात नदा मेरी 
आँखों में 
ठहरे हैं इक ज़माने से यूँ टपकने की 
चाहत लिए हुए - - 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ :
तहलील - घुलना 
ख़्वाब अबरेशमी - रेशमी स्वप्न 
क़तरात नदा - ओस की बूंदें 

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sea shell art 

20 जनवरी, 2013

कोई ख़्वाब - -

मालूम है ख़्वाब ओ शीशे में फ़र्क़ कुछ भी
नहीं, फिर भी आज रात के लिए 
कुछ ख़्वाब तो हसीं दे जाए,
बड़ी अहतियात से 
सजाई है दिल 
की ज़मीं, 
कुछ लम्हा सही, कहकशां से उतर कर - 
तेरी मुहोब्बत की रौशनी, जिस्म 
ओ जां पर कामिल बिखर 
जाए - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by Anthony Forster 

18 जनवरी, 2013

बर्ग ए जदीद - -


महवर ए फ़सील पर न रख ज़िन्दगी मेरी,
कहीं जल के फिर दोबारा अक्स ए 
आतिशफिशां  न बन जाऊं, 
ये तेरी आज़माइश न 
कर दे मुझे इक 
शोला 
ए जुनूं, पिघलूं कुछ इस तरह कि सारी - 
दुनिया में बरपे हंगामा, रहने दे 
मुझे नर्म ज़मीं के निचे,
नूर ए सहर की 
चाहत लिए,
कि तेरी मुहोब्बत में इक दिन वजूद हो 
जाए बर्ग ए जदीद - - 
* * 
- शांतनु सान्याल
अर्थ - 
महवर ए फ़सील - आग की दीवारों के बीच 
बर्ग ए जदीद - नया पत्ता 
नूर ए सहर - सुबह की किरण
आतिशफिशां - ज्वालामुखी 
शोला ए जुनूं - आवेगी शिखा 

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Artist-Gervie G. Macahia

क़फ़स ए जुनूं - -

नहीं चाहिए, वो मरहम जो ज़ख्म भर जाए -
बग़ैर इलामत के, कुछ और वक़्त 
चाहिए मुझको दर्द ज़ाद 
होने के लिए, 
वो दुनिया जो कुरेदती है ख़ाक ए वजूद मेरा,
नहीं चाहिए, वो चेहरा फ़रिश्ता, जो 
मसीहाई के नाम पर, दे जाए 
फिर मुझे धोका, इक 
मुश्त और ग़म 
चाहिए मुझे,
मुक्कमल बर्बाद होने के लिए, रूह करती है 
मिन्नतें, क़फ़स ए जुनूं से अक्सर,
चंद रोज़ और चाहिए मुझे,
ख़ुद से आज़ाद होने 
के लिए - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by albert gallery 



16 जनवरी, 2013

शब मोहोम - -

ये शब मोहोम है, या मेरी आँखों में किसी ने 
तिलिस्म भर दिया, ये कैसा वहम छाया 
कि थम चली है, सारी ख़ुदायी, न 
जागे से हैं मेरे जज़्बात, न 
सोयी सी ये तन्हाई, 
न जाने किस 
मोड़ पर 
आ गई ज़िन्दगी, वो सनम है या कोई हक़िक़ी -
ख़्वाब की सूरत, हर क़दम इक राज़ 
गहरा, हर लम्हा कोई लहराती 
सराब, हर जानिब इक 
सदा बाज़गश्त !
उनकी 
निगाहों में कहीं तैरती हैं, मेरी साँसों की बेशुमार 
रंगीन कश्तियाँ - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
शब मोहोम - मायावी रात 
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on Snowy Night Painting by Sabrina Zbasnik 

15 जनवरी, 2013

चश्म ए ज़िन्दां - -

उन चश्म ए ज़िन्दां में ज़िन्दगी चाहती है, 
ताउम्र क़ैद होना, उनसे मिल कर 
मैं, ज़ीस्त ए  ख़ानाबदोश 
भूल गया, ये ज़मीं 
वो आसमां,
कभी 
थे बहोत आशना, न जाने क्या हुआ -
क्यूँ कर हुआ, आईना है मेरे 
रूबरू लेकिन अफ़सोस 
मैं अपना ही 
अक्स 
भूल गया, उस तस्वीर में हैं, जाने कितने 
रंगीन मोड़, कितने उलझे राज़ ए 
ज़िन्दगी, उन ख़ामोश 
निगाहों को देख,
उफ़नते 
ज़रियां का जोश ओ ख़रोश भूल गया - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Sekhar Roy








14 जनवरी, 2013

इक मेरे सिवाय - -


तेरी साँसों में कहीं, आज भी महकती है,
मेरी भावनाओं की ख़ुशबू, मानो या
न मानो, आज भी गहरी आँखों
में हैं कहीं, मुझे पाने की 
अथक चाहत, जिसे 
तूने मृगतृषा 
समझा, 
वो कुछ और नहीं, मेरी मुहोब्बत की थी 
तपन, अब तलक तेरी हस्ती में 
हूँ मैं शामिल, इस मरू 
प्रांतर में इक मेरे 
सिवाय कोई 
बादल
का साया नहीं, और यही वजह है जो -
मुझे मुहाजिर होने नहीं देता,
* * 
- शांतनु सान्याल  
 art by Alexei Butirskiy

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03 जनवरी, 2013

वो परिशां था बहोत - -

वो परिशां था बहोत देख मेरी हालत 
ए जुनूं, उसे अंदाज़ कहाँ यूँ 
परस्तिश में ख़ुद को 
मिटा जाना,
न शमा कोई, न बज़्म की इफ़्त्ताह,
आसां कहाँ किसी की चाह में 
जिस्म ओ जां को यूँ 
जला जाना, 
उस आशिक़ ए रूह की थी अपनी 
ही ग़ैर मामूली वज़ाहत,
बेसदा हो दिल में 
समा जाना, 
न कोई सबूत, न ही शनाख्त की 
गुंजाइश, उस शोला निहां 
की तपिश में थी 
इक बेनज़ीर 
कशिश 
मुमिकन कहाँ वर्ना इश्क़ में इस 
तरह वजूद का पिघल 
जाना - - 
* * 
- शांतनु सान्याल
परस्तिश - पूजा
बज़्म - महफ़िल
इफ़्त्ताह - शुरुआत ,
वज़ाहत - वर्णन ,
बेनज़ीर - निराला 
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no idea about creator 1

02 जनवरी, 2013

वही शख़्स - -

न फेर यूँ निगाहें, उसकी दुआओं में है 
शामिल जहाँ की ख़ूबसूरती, वो 
वही शख़्स है जिसने तुझे 
अता की ज़िन्दगी,
वो वही 
आलम ए रौशनी है जिसकी पनाह में 
है दुनिया ओ बहिश्त की अमन 
ओ ख़ुशी, न कर यूँ तू 
नज़रअंदाज़ 
उसकी 
शख़्सियत में है कहीं सदा ए ख़ुदा, वो 
वही शख़्स है जिसने तुझे 
सिखाया इस ज़मीं 
पर दो क़दम 
चलना -
* * 
- शांतनु सान्याल 
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WENDY LEEDY ART

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past