30 सितंबर, 2012

नाआशना दस्तक - -

नीम शब ओ नाआशना दस्तक, दहलीज़ 
पर रख जाए यूँ कोई ख़ुश्बू ए लिम्स
के निशां नाज़ुक, बेख़ुदी में उठ 
चले हैं क़दम यूँ डगमगाए 
हुए कहाँ ज़मीं की 
सतह और 
कहाँ से 
इब्तदा ए आसमां, इक वहम पुरअसर, दूर 
तक बिखरी है नूर ए माहताब या 
किसी की मस्त मैशूद आँखों 
से हैं, बह चले  रौशनी के
आबशार, हर सिम्त 
है जवां ज़िन्दगी,
हर तरफ़ 
छाया हुआ, तिलस्मी ख़ुमार ही ख़ुमार - - - 

- शांतनु सान्याल 
नीम शब - मध्यरात्री 
नाआशना - अनजाना 
लिम्स - स्पर्श 
इब्तदा - शुरुआत 
वहम - भ्रान्ति 
मस्त मैशूद - मदहोश 
आबशार - झरना 
तिलस्मी ख़ुमार - जादुई नशा 
painting by Angela Treat Lyon

29 सितंबर, 2012

कोई ख़ानाबदोश - -

साहिल का दर्द रहा इब्दी ख़ामोश, मौज थे 
या कोई ख़ानाबदोश, आए लहराके यूँ 
कि दामन बचाना था मुश्किल, 
भीगी पलकों से सिर्फ़ हम 
देखते रहे, उनका यूँ 
लौट जाना मझ -
धार में, 
तोड़ गया सभी, ज़रीफ़ जज़्बाती किनारे,
शफ़क़ के धुंधलके में डूबता उभरता 
रहा, माहताब ए इश्क़ मेरा बार 
बार, बग़ैर सुख़न सिर्फ़ 
हम उन्हें देखते 
रहे, किस 
तलातुम में गुज़री रात, किसे क्या बताएं,
राह आतिश कामिल और पा बरहना,
न जाने किस की जानिब यूँ 
मदहोश हम गुज़रते 
रहे, तमाम रात 
कभी जिए
और कभी हम मुसलसल मरते रहे - - - - 

- शांतनु सान्याल 

इब्दी -    अनंत
ख़ानाबदोश - बंजारे
ज़रीफ़ - नाज़ुक
शफ़क़ - गोधूलि
माहताब - चाँद
सुख़न - बात
तलातुम - अशांति
कामिल - पूर्ण
पा बरहना -नंगे पैर

artist Joyce Ortner

28 सितंबर, 2012

तूफ़ान दायमी - -


मुश्किल है, बहोत तक़दीर का बदलना,
चाहो तो लौट जाओ, अभी तलक 
बाम ए हसरत पे चिराग़
नहीं रौशन, अभी 
शाम घिरने 
में है 
कुछ देर और बाक़ी, ये ख़ुदकश अंदाज़ -
कहीं कर न जाए तुम्हें बर्बाद 
मुकम्मल, रहने भी दो 
नाज़ुक दिल को 
अध खिले 
गुल की मानिंद, कहीं सुलग कर ख़ाक न 
हो जाए, बहोत जानलेवा है ये इश्क़
शबनमी, छीन लेगी ख़ुशगवार 
सुबह, रख जाएगी इक
तूफ़ान दायमी,
दिल के 
बहोत अन्दर, छोड़ जाएगी कोई बेतरतीब 
निशां, बेइन्तहा उम्र भर के लिए - - 

- शांतनु सान्याल
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बाम - छत 
खुदकश - आत्मघाती 
दायमी - दीर्घकालीन 
art by Tim Shorten

27 सितंबर, 2012

वो मासूम चेहरे - -

इक अजीब सा इदराक लिए आँखों में -
वो तकता है मेरी शख्सियत, 
आईना कोई आदमक़द
कर जाए मजरूह 
अन्दर तक, 
उसकी 
मासूम नज़र में हैं न जाने कैसी कशिश,
अपने आप उठ जाते हैं दुआओं के 
लिए बंधे हाथ, कोई अमीक़
फ़लसफ़ा नहीं यहाँ पर,
उन नमनाक 
आँखों में 
अक्सर दिखाई देती है ज़िन्दगी अपनी, 
चाह कर भी उसे नजरअंदाज़ 
करना है मुश्किल, वो 
अहसास जो 
मुझे 
ले जाती है बहोत दूर, ईंट पत्थरों से बने
इबादतगाह हैं जहाँ, महज रस्म 
अदायगी, मेरी मंज़िल में 
बसते हैं सिर्फ़ वो 
लोग, जिन्हें
मुहोब्बत 
के  सिवा कुछ भी मालूम नहीं, वो मासूम 
चेहरे जो इंसानियत के अलावा कुछ 
नहीं जानते - - 

- शांतनु सान्याल 
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इदराक - अनुभूति 
अमीक़ - गहरा 


painting by Doris Joa 

26 सितंबर, 2012

तराज़ू नादीद - -

गुमसुम सा है अक्स मेरा आजकल ! या 
बाज़गश्त सदाओं से है खौफ़ज़दा, 
इक तराज़ू नादीद, निगाहों 
के आगे डोलता है 
रात दिन 
लिए 
सीने में कोई सवाल अलामत ! दफ़न -
फ़ैसला गोया होने को है, मंज़र -
आम, गुनाह ओ सवाब के 
दरमियाँ झूलती है 
ज़िन्दगी, उस 
नक्श
पोशीदा से किनाराकशी नहीं आसां, किस 
चिलमन से निकल आएगी तीर ए
आतिश, बेहतर ख़ुदा जाने !
उस मुहोब्बत का राज़
है लामहदूद गहरा,
उम्र गुज़र 
जाए 
डूब के उभरने में - - 

- शांतनु सान्याल
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नादीद - अदृश्य
बाज़गश्त - लौटती
अलामत - प्रतीक
सवाब - पुण्य
लामहदूद - अंतहीन 
 Painting byTerry Wylde

23 सितंबर, 2012

नज़र के परे - -


वादियों में फिर बिखरी है नाज़ुक धूप,
या उन निगाहों से ज़ाहिर है हर
सिम्त ज़िन्दगी, फिर उठ 
चली है संदली ख़ुश्बू,
जिस्म ओ जां
पे है इक 
पुर असर अंदाज़ या छाया हुआ कोई 
शाज़ ए अंजाम, हर जानिब एक 
ही बहस, उनकी जुस्तजू 
उनका इंतज़ार, हर 
शख्स के चेहरे 
में हो जैसे 
बेइन्तहा तलाश, हर तरफ़ उसकी है -
सल्तनत, फिर भी नहीं वो नज़र 
के आसपास - - 

- शांतनु सान्याल
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Vjekoslav Nemesh s creation 

21 सितंबर, 2012

अधूरा सफ़र - -


बहोत मिन्नतों के बाद हासिल थी दुआओं 
की रात, बाहम निकले थे दूर लेकिन 
मंज़िल पा न सके, बहोत
नज़दीक थी ख़्वाब
ओ ख़याल की 
दुनिया,
महज़ दस्तकों से लौट आईं दिल की बात -
चाहा लाख लेकिन दर्द अपना उसे 
दिखला न सके, चार क़दम 
थी तोहम आस्ताना, 
उसपार फिर भी 
जा न सके, 
बाहम निकले थे साथ साथ किसी अजनबी 
सफ़र में, रात गुज़री, दिन बीते,
मौसम ने बदली करवटें,
उम्र ने ओढ़ा झुर्रियों 
का लबादा, 
बहोत
क़रीब सांस रोके रही ज़िन्दगी, न जाने क्यूँ 
फिर भी उसे अपना बना न सके - - 

- शांतनु सान्याल  
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बाहम - दोनों 
तोहम आस्ताना - मायावी दहलीज़ 
no idea about painter 2

17 सितंबर, 2012

हर चीज़ अपनी जगह - -


हालात का रोना अपनी जगह, कभी मिटटी  
कभी सोना अपनी जगह, ख़ुद से बाहर
तो निकलने दे मुझको, इक मुश्त 
बादल की तरह कभी तो 
बिखरने दे मुझको, 
तक़दीर से 
कैसी 
शिकायत, हर सांस नाज़ुक इक शीशे का -
खिलौना अपनी जगह, इस ख़ौफ में 
तमाम रात नींद थी, मुझसे यूँ 
दामन बचाए दूर दूर,
कहीं छू न जाए 
साया भी 
मेरा 
मनहूस, तेरी मुहोब्बत का मिशाल कहाँ, हर 
पल जीना हर लम्हा मरना अपनी 
जगह, दुनिया की नज़र में हूँ 
मुक़द्दस पैकर, आधी 
रात गिर कर 
संभलना
अपनी जगह, न कोई रौशनी न ही सुलगते 
अंगारे, ख़ामोश जिस्म का दहकना 
अपनी जगह - - 

- शांतनु सान्याल
Brian’s PAINTING 

16 सितंबर, 2012

फिर कभी पूछ लेना - -


हम आज भी हैं वहीँ पड़े किसी सीप की तरह,
लिए सीने में ज़ख्म रंगीन, ये अपनी 
अपनी क़िस्मत है, कि तुम 
मोती नायाब हो गए, 
छत पे बिखरी 
है चांदनी 
ये ख़बर हमने ही दी थी तुम्हें, सीड़ी थामे हम 
अँधेरे में रहे खड़े, ये और बात है कि तुम 
मंजिल छूने में कामयाब हो गए, 
फिर कभी पूछ लेना हाल ए
दिल अपना, आज तो है 
रौशन तुम्हारी 
दुनिया, 
कभी थे हम भी, तुम्हारे लिए अहमियत का इक 
सबब, वक़्त वक़्त की बात है, रात घिरते 
ही हम भी डूबता बेरंग आफ़ताब हो 
गए - -

- शांतनु सान्याल 
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pearl with oyster 

15 सितंबर, 2012

बाहोश जिस्म - -


इक वसीअ ख़ामोशी, दूर, हद ए नज़र तक,
पुरसुकून समंदर कोई हो ठहरा सा, 
उनकी निगाहों में, तामीर ए 
कायनात से पहले ! वो 
मुख़ातिब हैं या 
उतरा है, 
मुक्कमल सितारों का जहाँ, ज़मीं पे आज
रात, उन झुकी पलकों में फिर सज 
चले हैं आसमानी ख़्वाब, ये 
उनकी मुहोब्बत की 
हैं राहें या रूह 
भटकती 
है, बेक़रार सी कहकशां की गलियों में, कोई 
समझाए राज़ ए ख़ुमारी, न शीशा 
कोई, न छलकती हैं मै की 
बूंदे नज़र के सामने,
बाहोश मेरा 
जिस्म 
फिर क्यूँ इस क़दर डगमगा जाए - - - - - - - 

- शांतनु सान्याल
night rain 

14 सितंबर, 2012

ज़माना हुआ - -


नाकाम रहीं सभी कोशिशें, उसे जलना था 
परवाने की मानिंद सो वो जल गया, 
न आवाज़ ही सुनी न कोई 
ताकीद का असर, न 
जाने क्या था 
उसके 
दिल में, ख़ामोश आतिशफिशां या ठहरा 
तूफ़ान कोई, पलक झपकते वो 
मचल गया, देखते, देखते 
ही वो दोनों जहाँ से 
कहीं बहोत 
आगे 
तन्हा, जलते पांव निकल गया, सदाएं जो 
लौट आईं छू कर उसका तपता बदन,
वादियों में गूंजती रहीं मुद्दतों, 
ज़माना हुआ बहार को 
इस तरफ आए 
हुए - -

- शांतनु सान्याल 
alley at night - no idea about painter 

13 सितंबर, 2012

ग़ैर महसूस - -


वो जुस्तजू जो ले जाए ख़ुद से ख़ुद को बहोत दूर 
नहीं चाहिए वो चाहत जो कर जाए मुझे मग़रूर,

मजनून आज़माइश बनाती है मुझे रंग ए हिना,
यक़ीनन आज नहीं तो कल रंग लाएगी ये ज़रूर,  

ये मेरी ज़िन्दगी है या कोई कशीर रंगी अक्काश,
टूट कर भी बिखरती है जो हर जानिब मेरे हुज़ूर,

चाहे जो भी नाम दे लें इसे फ़र्क़ कुछ नहीं पड़ता,
ग़ैर महसूस हो कर भी है ये  इश्क बहोत मशहूर,

- शांतनु सान्याल
painting by Thomas Kinkade Paintings 

11 सितंबर, 2012

किसी के लिए - -

इज़हार मेरा शायद न रास आए उनको, रहने
भी दे वहम दिल में मेरी बेज़ुबानी का, 
उस नुक्कड़ में शरेआम लुट 
चुका हूँ मैं कई बार,
तमाशबीन 
की 
फ़ेहरिस्त है बहोत लम्बी, बयां करते न गुज़र 
जाए उम्र सारी, ये भी सच है कि सब से 
ऊपर था नाम उनका, जो खाते 
रहे क़सम मेरी इश्क़ ओ 
जवानी का, बहोत 
मुश्किल है 
राज़ ए
जज़्बात का ज़ाहिर ए आम होना, कौन है जो 
चाहेगा, किसी और के लिए मिट कर 
यूँ तमाम होना - - 

- शांतनु सान्याल
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painting by Ivan Aivazovsky Resimleri 

09 सितंबर, 2012

महा अर्घ्य - -


अनाहूत वृष्टि की तरह खिली धूप में कभी -
वो जाता है बरस, देह और प्राण से 
होकर, उस क्षणिक अनुभूति 
में है जीवन निहित, भर 
जाता है ज्यों तृषित 
मरू प्रांतर,
उस प्रणयगंध में है पावन आभास समाहित,
पारदर्शी झील के वक्ष - स्थल में हो, 
जैसे उन्मुक्त नभ परिभाषित,
वो भाव जो बिखर जाए
केशर की फूलों की 
तरह कोर कोर,
वो नेह बंध
जो जुड़ जाए चहुँ दिश चहुँ ओर, निःश्वास 
से उठ कर जा पहुंचे नयन कोण, 
आर्द्र दृष्टि में हो जब मर्म 
उजागर, तब जीवन 
अर्थ हो प्रदीप्त,
स्व बिम्ब 
जब उभरे किसी व्यथित ह्रदय के दर्पण में, 
पाए जीवन अतिआनंद तब सर्व 
समर्पण में - - 

- शांतनु सान्याल
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painting by MARA BOSCH

06 सितंबर, 2012

शाम ढलते - -

सांझ के धुंधलके में देखा है, अक्सर उस चेहरे
से उभरती हुई ज़िन्दगी, सूरज डूबने का 
मंज़र हो चाहे कितना ही ख़ूबसूरत,
लेकिन उसके आते ही खिल
जाती हैं हर तरफ शब
ए गुल की उदास 
क्यारियां,
रात उतरती है नीली पहाड़ियों से मद्धम मद्धम,
महक जाती हैं दिल की धड़कन, बोलतीं 
सी हैं सभी बेज़ान परछाइयाँ, न 
जाने क्या तिलिस्म सा है 
उसकी निगाहों में ऐ
दोस्त! बहुत 
कुछ 
चाह कर भी ख़ामोश रहती है बेक़रार मेरी ज़ुबां,
उन ठहरे लम्हों में ज़िन्दगी तलाश करती 
है खोया हुआ वजूद अपना, बूंद बूंद 
ख़्वाब की ज़मीं, क़तरा क़तरा 
आस्मां, नूर दर नूर 
उसके इश्क़ का 
निशां !

- शांतनु सान्याल
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painting by by Christopher Harriot

03 सितंबर, 2012

शब ओ रोज़


ज़ख्मों का हिसाब न पूछ मजरूह ज़िन्दगी से,
बमुश्किल संभला है मेरा वजूद तबाही के बाद,
अभी तलक हैं ख़राश, ज़मीर की गहराइयों में,
बाक़ी कुछ भी न रहा, वक़्त की गवाही के बाद, 

हूँ क़ैद अपने आप में इस क़दर, शब ओ रोज़ -
खौफ़ नहीं किसी से अब ग़म ए स्याही के बाद, 

रग रग में बह चले हैं ज़हर बुझे तीरों के असर 
लज्ज़ते ज़िन्दगी बढ गई है आवाजाही के बाद,

दिन ब दिन बढ़ने लगी है,प्यास कुछ ज़ियादा -
दीवानगी ख़ुलेआम, बारहा यूँ  मनाही के बाद , 

- शांतनु सान्याल
painting by Arnold Bocklin 1827-1901

02 सितंबर, 2012


कल्पना से परे 

वो दहन जो जिस्म ओ जां से गुज़र रूह तक पहुंचे,
तिश्नगी जो अनंतकाल तक न बुझे, इबादत 
वो, जिसकी महक बिखर जाए सातवें 
आस्मां तक, बहोत मुश्किल है -
मेरे दोस्त ! मुहोब्बत का 
जावेदां होना, 
फिर भी न जाने क्यूँ तलाशती है नज़र, आँखों -
में तेरी कल्पना से परे दुनिया, वो जो 
ग़ायब होके भी है पेश दर पेश,
कहाँ आसां इतना, इक 
मुश्त ख़्वाबों का 
अब्र आलूद 
आस्मां होना - - - 

- शांतनु सान्याल 
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 art by Macpherson

न जाने क्यूँ

कहीं कोई टूटा है तारा , या रात ढले चमकती हैं 
बिजलियाँ, उसकी हर बात में है, बला की 
ख़ूबसूरती, ज़िन्दगी उलझती जाए 
हर लम्हा, इक अज़ीब सी  
कसक है, उसकी आँखों
में, रह रह कर 
पूछतीं हों 
जैसे अनबुझ पहेलियाँ, हर बार पूछता हूँ मैं -
उसके घर का पता, हर बार हलक में 
उठतीं हैं बेखौफ़ हिचकियाँ, वो 
देखते हैं मुझे इस अंदाज़ 
से कि दिल की 
गहराइयों 
में उठते हैं अनचाहे बदलियाँ - - - - 

- शांतनु सान्याल
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no idea about painter 

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