22 जुलाई, 2012


नेपथ्य यात्री 

आलोक सज्जा के मध्य मेरा व्यक्तित्व 
था कदाचित, कुछ कृत्रिम कुछ छद्म -
वेशी, नेपथ्य में प्रतीक्षारत 
अंतर्मन, लेकिन 
मौलिकता 
बचाने
में रहा सदैव प्रयासरत, पारदर्शिता छुपा 
न सकी उम्र की यवनिका, आतंरिक 
और बाह्य के बीच अंतर रहा 
बहुत कम, अहर्निश 
एक मीमांसा,
प्रतिपल 
आत्मविश्लेषण, शाश्वत सत्य और 
जीवन अन्वेषण, सजल बिम्ब 
से मुक्ति कभी नहीं 
संभव, इस 
मोक्ष 
के ऋत्विक बनना नहीं सहज, रिक्त 
हस्त, अदृश्य मोह अर्घ्य, एक 
निरंतर अनल पथ - - - 
- शांतनु सान्याल 
painting by DANE WILLERS 




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