10 जुलाई, 2012

स्पर्श

उभरता चाँद कोई झील के सीने से, लगे
ठहरा सा, एकटक देखना उसका
कर जाए मंत्रमुग्ध सा,
स्थिर पलकों में हैं
ख़्वाब के
लहर
रुके रुके से, दहकती वादियों को जैसे -
ललचाये घने बादल झुके झुके
से, कोई बारिश जो भिगो
जाए सदियों का दहन,
कोई नदी अनोखी
मिटा जाए
सागर
का खारापन, कोई रात का मुसाफिर
रख जाए बंद आँखों के ऊपर
भीगा अपनापन - -

- शांतनु सान्याल




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