05 जुलाई, 2012

नज़्म - - अनजाने मोड़ पर

ये आवारगी भी इक बहाना है  ज़िन्दगी का,
कि भीगते खड़े हैं हम; भरी बरसात में,
लिए आँखों में अश्क ठहरे हुए, 
न देख पाओगे तुम ज़ख्म 
दिल के मेरे, अभी 
तक हो बहुत 
दूर किसी 
अनजाने मोड़ पर, लेके निगाहों में ख़्वाबों 
की दुनिया,  ये मुस्कराहट हैं या 
कागज़ी फूल, जो भी समझ 
लें लेकिन हक़ीकत से 
ख़ूबसूरत हैं ख़्यालों
की सरज़मीं,
राहत से 
कम तो नहीं, ये अहसास कि तुम हो दिल 
के बहुत नज़दीक - -

- शांतनु सान्याल


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