30 जून, 2012

नज़्म - - ख़ामोश निगाहें,

अजनबी सी है रात गुज़री, तकती रहीं 
ख़ामोश निगाहें, वो ख़्वाब थे या 
हकीक़त किसे हम ये राज़ 
बताएं, खंडहर से पड़े 
हैं हर सिम्त ये 
जज़्बात
के ज़खिरे, ये दर्दे क़दीम अपना, दिखाएँ 
भी तो किसे दिखाएँ, कभी राह थी 
इस जानिब, कभी चाह थी 
उनकी आसमां से 
आगे, अब 
टूटते 
सितारों को कैसे पलकों में हम बिठाएं - -
- शांतनु सान्याल


27 जून, 2012

नज़्म - - सदियों की तन्हाई

मीलों लम्बी ये ख़ामोशी, चांदनी में झुलसती
सदियों की तन्हाई, कहीं कोई नहीं; दूर
तक, सिर्फ़ मैं हूँ और मुझ से 
बरहम मेरी परछाई, 
ये बाज़गश्त 
कैसी 
जो मुझ से निकल कर मुझ तलक लौट आई, 
कौन है जो दे रहा कुछ पहचानी सी
दस्तक, ये वहम मेरा कहीं हो
न जाए इक सच्चाई,
वजूद है कोई 
या आईना,
सूरतें सभी एक जैसीं, ये ज़मीं अपनी या है -
परायी, घूरते से हैं सन्नाटे, अँधेरे में 
भटकतीं क़ातिल निगाहें, किस 
से करें दोस्ती और किस 
से करें बेवफ़ाई,
इस मुखौटे 
के शहर में किस पे करें भरोसा, कौन देगा यहाँ 
ज़िन्दा होने की गवाही - - - 
- शांतनु सान्याल 


बाज़गश्त - प्रतिध्वनि
बरहम - नाराज़ 



   

26 जून, 2012


फिर दोबारा 
उठे फिर कहीं से यकायक, लापता  तूफां 
फिर बरसें  टूटकर, बादलों के साए,
फिर निगाहों में तेरी चाहत 
फिर ज़िन्दगी चाहती 
है क़तरा क़तरा 
बिखरना, 
फिर बहे संदली हवाएं, फिर फिज़ाओं में 
हो पुरअशर ताज़गी, फिर धनक 
से छलकें रंगीन जज़्बात,
फिर इक बार दिल 
चाहता है यूँ 
संवरना
कि जीने के मानी हों *लाज़वाल - - - 
- शांतनु सान्याल  
painting by Theo Dapore

25 जून, 2012

नज़्म


तीर ओ कमान; जो भी था पास उसके -
आज़मा  लिए उसने, दिल ऐ
*गज़ाल लेकिन कर न 
सका बस में कोई,
मजरूह मेरे
जज़्बात
हैं तैयार, हर इक  इम्तहां से गुजरने को, 
वो परेशां सा है आजकल, मुझसे 
मिलने के बाद, कि शिकारी 
ख़ुद हो चला हो जैसे 
शिकार, अपने 
ही फैलाए 
जाल में, 
मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती जो करूँ उसे 
उससे  ही आज़ाद, फिर कभी 
सोचेंगे, जाएँ या न जाएँ 
उसके दिल के 
पास - - 
- शांतनु सान्याल 
* गज़ाल (अरबी) - हिरण

23 जून, 2012


पुराना आईना 
वो हदे नज़र नहीं, लेकिन छू जाय है; दिल की 
गहराई, ये कैसा भरम मेरा; चल रहा हूँ 
ज़मीं पर; और आसमां छू रही 
मेरी परछाई, न चाँद, न 
सितारे, न ही कोई 
आकाशगंगा,
फिर भी है जिस्मो जां रौशन, न जाने कौन 
पिछले पहर भर गया; ख़ुश्बुओं से मेरी 
तन्हाई, लिख  गया ज़िन्दगी के
रिक्त पृष्ठों पर नयी 
कहानी, ये फिज़ा;
ये सुबह; सभी 
तो थे 
रोज़ मौजूद, फिर क्यूँ पूछता है; मेरा नाम 
आईना पुराना - - 
- शांतनु सान्याल  
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blooming mirror 

21 जून, 2012

नज़्म - - दस्तख़त,

इस शहर की तमाम रास्ते, गलि नुक्कड़ 
थे आशना कभी मुझसे; इक मुद्दत 
के बाद लौटा हूँ यहाँ, कोई तो 
बतलाए मेरे घर का निशां,
इसी मोड़ पर कभी 
उठाई थी क़सम 
साथ जीने 
मरने 
की; यही कहीं था शायद कोई सोया हुआ 
आतिशफ़िशां, जाने कहाँ उड़ गए 
सुलगते राख़ में वो तहरीरे 
अहद, जिसमे की थी 
हमने खूने 
दस्तख़त, कि लौटा लाएंगे ज़मीं पर इक 
दिन सितारों कि दुनिया - - 
- शांतनु सान्याल 

19 जून, 2012


दिल से उठती है जो आह, उसका असर न पूछ 
जाती है, वो हमराह ताउम्र, जहाँ तक 
तू जाए, फिरदौस हो या आतिशे 
दर्रा, हर मक़ाम पे वो दर 
तेरा खटखटाए, 
मुमकिन है 
ताक़त से 
जीत जाए कोई दुनिया, लाज़िम नहीं  दिलों में 
हुकूमत करना - - - 
- शांतनु सान्याल
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mysterious night gate 

16 जून, 2012


परावर्तन पूर्व 
वो पुरोधा कोई या मीर ए कारवां जो भी हो 
उस दिगंत से हो कर गुज़रना है अभी 
बाक़ी, किताबी बातों से कहीं 
गहरी है ज़िन्दगी की 
वास्तविकताएं,
कभी अपने 
अग्नि 
वलय से बाहर निकल कर देखें; हर क़दम 
पर खड़ें हैं छद्मवेशी रावण, क्षितिज 
रेखाओं पर दौड़ते हैं स्वर्ण -
मृगिय आभास, हर 
कोई खड़ा है 
लिए 
शून्य पात्र, सिर्फ एक मौक़े की है उन्हें -
तलाश, जो जिसे छल जाए यहाँ 
नहीं कोई नैतिकता का 
प्राचल, यहाँ कोई 
राघव नहीं 
जो आए अकस्मात् कर जाये जीर्णोद्धार ! 
स्वयं को करनी है सत्यता की 
खोज, कोई नहीं यहाँ 
जो कर जाये 
अंतर्मन 
प्रबुद्ध सहसा, एक युद्ध खुद से पहले फिर 
करें परावर्तन की चाह - - - 
- शांतनु सान्याल
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artist McNaughtonRainy Reflections..

10 जून, 2012


किसकी परछाइयाँ

उस लकीर पर जहाँ, मिलते हैं ज़मीं आसमां
गुज़रते हैं अक्सर देर रात सितारों के कारवां,

उसी मंज़िल पर हैं कहीं, रौशनी के चिलमन -
वहीँ पर कहीं है,शायद मेरा पोशीदा मेहरबां,

किस के दम पर हैं रौशन,आँधियों में ये दीये
जिन्हें बुझा न पाए, उभरती रेतीली आंधियां,

वक़्त ने चाह बारहा,यूँ तो मिटाना मेरा वजूद 
खुले सहरा में हैं तैरती,ये किसकी परछाइयाँ !

- शांतनु सान्याल
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Paintings Realism Oil Seascape Igor Maykov

07 जून, 2012


दस्तक 
एक दस्तक; जो उम्र भर पीछा करे 
नींद हो या जागरण, वो खड़ा 
था देर तक, दरवाज़े पर 
लिए न जाने क्या 
चाहत, कोई 
सन्देश,
या मुस्कराने की राहत, देर कर दी 
ज़िन्दगी ने द्वार खोलने में 
इतनी कि उसे आवाज़ 
छू न सकी, वो
कोई दूत 
था, या अक्स जाना पहचाना, रख 
गया कोई शून्य इत्रदान 
देहरी में इस तरह 
कि सुरभित 
हैं तबसे 
अंतर्मन की संकुचित गलियां, कभी 
भूले से वो आ जाये इस सोच 
में रखता हूँ दिल के 
कपाट खुले
आठों 
पहर,जीवन चाहता है कि भर लें वो 
शून्यता जो वक़्त ने दिए,
छलक जाएँ फिर 
ख़ुश्बू की
बूंदे
उदास अहातों तक बिखर कर - - - 
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
   

art by ANN MORTIMER 

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past