26 मई, 2012

रौशनी का वादा

अन्तर्निहित थे मन में सभी अंकुरित भावनाएं ;
मौसम ने कदाचित शपथ उभरने का 
निभाया होता, मेघों की वरीयता 
जो भी हो, कुछ बूंद यूँ ही 
लापरवाही से तपते 
ह्रदय पर 
गिराया होता, उपेक्षित मरुभूमि की ख़ामोशी -
व नज़र अंदाज़ आसमान, कहीं से 
रात ने शबनम तो चुराया 
होता, नियति की थी 
अपनी  ही 
मज़बूरी, वरना रेत के टीलों में कम से कम 
चांदनी तो बिछाया होता, इन अंधेरों 
से निकल आने में वक़्त नहीं 
लगता ; ग़र रौशनी ने 
अपना वादा तो 
निभाया 
होता - - - 
- शांतनु सान्याल 

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