08 मई, 2012

उसने कहा था

किस खूबसूरती से उसने की किनाराकशी,
न कोई आवाज़, न ही दर्दे अहसास
मासूम निगाहों से कहा -
शीशा ही था सो
टूट गया,
बूंद बूंद बिखरती रही ज़िन्दगी, दम ब दम
हर ख़ुशी, फूल बिखरे थे ज़मीं  पे
बेतरतीब, मुस्कान लिए
उसने कहा - गुल ही
थे सो झर गए,
इक साँस
जो उभरती रही रात दिन किसी के लिए यूँ
टूट कर, आँखों में  नमी थी या कोई
ख़्वाब की चुभन, पलकों में
ठहरे ज़रा देर ज़रूर,
और फिर गिर
पड़े, उसने
कहा - आंसू ही थे छलके और टूट कर बिखर
गए - -

- शांतनु सान्याल

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