18 फ़रवरी, 2012

ज़रा सी देर 

इस रात की अपनी ही हैं कुछ मजबूरियां
चांदनी छू तो जातीं हैं जिस्म
लेकिन छूट से जाते हैं
कहीं दूर जज़्बात
के दुनिया !
उसके बातों में हैं उम्मीद की ख़ुश्बू, मेरे
दिल में हैं मगर दर्द की अब तलक
परछाइयाँ, संभलने दे  ज़रा
न दे दस्तक यूँ बेक़रार
हो कर, अभी
अभी ज़िन्दगी ने सिखा है लड़खड़ा कर
चलना, होश आ ले तो ज़रा फिर
खोल दूँ , मैं सभी बंद
रोशनदान और
 खिड़कियाँ - - -
-- शांतनु सान्याल

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