21 दिसंबर, 2012

मस्मुमियत दर्दनाक !

तीर कोई जो गुज़रा है, दिल के पार अभी,
ख़ामोश बग़ैर इशारा, संभल भी पाते 
कि कर गई मजरुह जिस्म ओ 
जां, किसी की इक नज़र,
अभी तलक है इक 
मस्मुमियत 
दर्दनाक !
इलाज ए दायमी नज़र न आए दूर तक !
ज़िन्दगी फिर है परेशां, न है ज़मीं 
हमदर्द और न ही आशना ऐ 
आसमां, ये वजूद 
है मेरा या 
ग़ैर मुतमईन भटकती रूह ए क़दीम - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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मस्मुमियत - नशा 
दायमी - दीर्घ 
ग़ैर मुतमईन - अतृप्त 
क़दीम - प्राचीन 
 Dzign Art

07 दिसंबर, 2012

ज़िंदगी का रुख़ - -

अनजाने ही हम बहुत दूर यूँ आ गए कि 
मुमकिन नहीं, बाहमी क़रार तोड़ देना,

दर चश्म अंदाज़ हैं, उभरते कई  ख़्वाब 
मुश्किल है,लेकिन सारा जहाँ छोड़ देना,

तूही नहीं, इक मक़सद ए ज़िन्दगी मेरी,
आसां कहां, सब ख़ुशी तुझसे जोड़ देना, 

तरजीह की कसौटी है, यूं उलझन भरी -
नहीं लाज़िम ज़िंदगी का रुख़ मोड़ देना !

- शांतनु सान्याल 
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art by Petra Ackermann

06 दिसंबर, 2012

हमें मंज़ूर नहीं - -

कर सके तो करो मुझे अहसास, अभी इसी पल,
जां तो महज है उठती गिरती सांसों का 
इक ताना बाना, हमने तो रूह 
तक लिख दी तुम्हारे 
नाम, नतीजा 
जो भी 
हो इस दीवानगी का, आतिशफिशां कहो या -
कोई और सुलगता सा तुफ़ान, इक 
जूनून ए फ़िदा है मेरी चाहत,
आसमां से भी लौट 
आती है हर 
दफ़ा, दे  
दस्तक दरब इल्ही, कि तुमसे अलहदगी हमें 
मंज़ूर नहीं - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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दरब इल्ही - स्वर्ग द्वार 
Painting by Jurek Zamoyski 

28 नवंबर, 2012

दो लफ्ज़

वो अभी तलक है सांसों में शामिल, बेइन्तहा 
इक जावेदान ख़ुश्बू की तरह, कोई भी 
चेहरा नहीं दर मुक़ाबिल उसके,
उस बाज़ताब चश्म में मैंने 
देख ली सारी दुनिया,
अब हर एक 
नज़र 
है बेमानी उस ख़ूबसूरत निगाह के सामने - - !
- शांतनु सान्याल 

27 नवंबर, 2012

हमदर्द नज़र - -

इक इंतज़ार जो दे जाए ज़िन्दगी को 
ख़ुशगवार मानी, इक शाम 
कभी ग़लती से ही सही 
लिख जा मेरे 
नाम - - 
कब से हैं मअतर जज़्बात के दरिचे,
कोई लम्हा रख जा मेरी सुर्ख़ 
निगाहों में शबनमी 
ख़्वाब की 
तरह,
मालूम है मुझे रेगिस्तां की हक़ीक़त !
कभी किसी दिन के लिए मेरी 
जां, भिगो जा पल दो पल 
के लिए वीरां पड़े 
ज़िन्दगी के 
रास्ते,
किसी भूले हुए बादलों के मानिंद, कि 
तकती हैं, उदास आँखें तेरी 
इक हमदर्द नज़र के 
लिए - - 

- शांतनु सान्याल  
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art by Francine Dufour Jones

23 नवंबर, 2012

अहसास ए गुलदान - -

नफ़्स मेरा निजात पा न सका, बड़ी 
नफ़ासत के साथ उसने सजायी 
अहसास ए गुलदान, कुछ 
तो है उसकी इसरार 
आमेज़ निगाहों 
की रौशनी 
में, ज़िन्दगी हर क़दम संवर जाती 
है बिखरने से पहले, वो शख्स 
जो मुझे ले जाए अक्सर 
तसव्वुर  से आगे,
किसी और 
ही जहान में, जहां गुलज़ार हैं सभी 
गुल ओ ख़ार, अपनी अपनी 
अंदरूनी ख़ूबसूरती 
लिए हुए - - 

- शांतनु सान्याल 
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इसरार 
आमेज़ - रहस्यमयी 

painting by BARBARA FOX 2

20 नवंबर, 2012

न जाने क्या था - -

उठा कुछ इस तरह, हिजाब उसके 
चेहरे से, गोया बिखरती हो
ख़ुश्बू, रात गहराए 
जास्मिन की 
नाज़ुक 
शाख़ों से ! बेहोश से जिस्म ओ -
ज़ेहन, वो चांदनी थी या 
कोई  ख़ुमार आलूद 
साया, इक 
अनचाहा ख़ूबसूरत नशा, या राज़ 
पोशीदा, ख़ुदा जाने वो क्या 
था, इक तलातुम 
ज़िन्दगी को 
दे गया - - 

- शांतनु सान्याल 
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moonlit flower 

15 नवंबर, 2012

रूह कामिल - -

पैमाना जो भी हो किसी की नज़र में,
वो शख्स कोई दूसरा नहीं मेरे 
अलावा, जो खौफ़ज़दा
सा है ख़ुद की 
नज़र में, ऐतराफ़ करना था बहोत - 
मुश्किल, अक्स था वाज़ी 
अपनी जगह, इक 
लम्बी सी 
फ़हरिस्त नाज़ुक हर्फ़ों में लिखी, वो 
लापता हिसाब या था कोई 
उम्र भर की पोशीदा 
नक्क़ासी,
उभरती रही बारहा छुपाने के बाद ! 
इक साया सा है, जो कर 
जाता है परेशां, हर 
क़दम जिंदगी 
चाहती है, 
इस्लाह  मुसलसल, कोई नहीं यहाँ 
रूह कामिल - - 

- शांतनु सान्याल  
ऐतराफ़ - ख़ुद को पहचानना 
इस्लाह - सुधार 
रूह कामिल - परिपूर्ण आत्मा 
Artist Steven Townsend 
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11 नवंबर, 2012

निजात - -

बहुत दूर आने के बाद, न करो लौट जाने की 
बात, मुमकिन कहाँ सांसों का वापस 
आना, इक बार ग़र हो जाए
कहीं तबादिल, दिल
ओ जां, अब 
ताउम्र 
ए ताल्लुक़ का बिखर जाना नहीं आसां, ये -
और बात है कि बदल जाओ, राह ए 
मंज़िल अपनी, बहोत ही 
मुश्किल है, अहसास 
ए रूह से यूँ 
निजात 
पाना, ख़ामोश ! ज़िन्दगी से कहीं और यूँ ही 
निकल जाना, हर एक  मरहले पे 
होगी मौजूद, कराह ए 
इश्क़, क़दम 
बढ़ाना 
भी चाहोगे तो साँस उभर आएगी - - - - - - 

- शांतनु सान्याल 
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painting by Felipe D Tapia

02 नवंबर, 2012

आख़री पहर - -

ख़्वाब टूटने का सोग मनाएं क्यूँ कर !
शीशा ए ख़याल था सो टूट गया, 
अभी तक उम्मीद है मेरी 
बाक़ी, ज़िन्दगी में 
फिर अनचाहा 
रोग लगाएं
क्यूँ कर, 
इधर से कहीं गुज़रती है आख़री पहर 
कहकशां, यहीं पे कहीं रुकता है 
चाँद घड़ी दो घड़ी, ये तेरे 
सफ़ाफ़ चश्म हैं या 
कोई पोशीदा 
मुसाफ़िरख़ाना, हर क़दम राज़ गहरा !
हर जानिब छाए संदली धुआं,
सफ़ा दर सफ़ा कोई
लिख रहा हो 
जैसे 
वहमआलूद, इक ख़ूबसूरत  सफ़र ए 
अफ़साना - - 

- शांतनु सान्याल
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सोग - दुःख 
कहकशां - आकाशगंगा 
सफ़ाफ़ चश्म - पारदर्शी आँख 
पोशीदा - छुपा हुआ 
सफ़ा दर सफ़ा - पृष्ठ प्रति पृष्ठ 
वहमआलूद - मायावी 
art of steave phillips 
--آخری پہر

خواب ٹوٹنے کا سوگے مناے کیوں کر!
شیشہ اے خیال تھا سو ٹوٹ گیا،
ابھی تک امید ہے میری
باقی، زندگی میں
پھر انچاها
روگ  لگائیں
کیوں کر،
ادھر سے کہیں گزرتی ہے آخری پہر
کہکشاں ، یہیں پہ کہیں ركتا ہے
چاند گھڑی دو گھڑی، یہ تیرے
سفاف چشم ہے یا
کوئی پوشیدہ
مسافرخانا، ہر قدم راز گہرا!
ہر جانب چھائے صندلی  دھواں،
صفا  درصفا  کوئی
لکھ رہا ہو
جیسے
وهم آلود ، حیرت انگیز زندگی کا
اک افسانہ -

-شانتنو  سانیال

30 अक्तूबर, 2012

नज़्म - - बूंद बूंद

तारुफ़ नहीं आसां, ग़फ़लत ए तक़दीर था 
या कोई शहर फिरंगी, उस पैकर ए 
मसीहा ने मुझे लूटा है सरे 
बज़्म कई बार, वो 
सकूत जो कर 
जाए दिल 
ज़ख़्मी, ऐ रफ़ीक़ ए जां, न देख फिर मुझे 
वही ज़माने की नज़र से, बाअज़
वक़्त पिघला है ये जिस्म 
तब कहीं जा कर 
ज़िन्दगी ने 
पायी है 
जलसा ए रौशनी, जलने दे जिगर मेरा
यूँ ही सुबह होने तलक, मद्धम - - 
मद्धम, बिखरने दे मेरा 
वजूद तेरे इश्क़ में 
बूंद बूंद - - 

- शांतनु सान्याल  
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तारुफ़ - परिचय
 ग़फ़लत - अवहेलना 
शहर फिरंगी - बहुरंगी नलिका 
पैकर - रूप 
बज़्म - महफ़िल
 सकूत - ख़ामोशी 
रफ़ीक़ - दोस्त 
बाअज़ - कई 

نظم
تارف نہیں اسا، غفلت اے تقدیر تھا
یا کوئی شہر پھرگي، اس پےكر اے
مسیحا نے مجھے لوٹا ہے سر
بذم کئی بار، وہ
سكوت جو کر
جائے دل
زخمی، اے رفیق اے جاں، نہ دیکھ پھر مجھے
وہی زمانے کی نظر سے، بعض 
وقت پگھلا ہے یہ جسم
تب کہیں جا کر
زندگی نے
پائی ہے
جلسہ اے روشنی، جلنے دے جگر میرا
یوں ہی صبح ہونے تلک، مدھم -
مدھم، بکھرنے دے میرا
وجود تیرے عشق میں
بوند بوند -

شانتنو سانیال  
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تارف - تعارف
  غفلت - خلاف ورزی
شہر پھرگي - بهرگي ٹیوب
پےكر - طور پر
بذم - محفل
  سكوت - خاموشی
رفیق - دوست
بعض - کئی
 Kaleidoscope Art

19 अक्तूबर, 2012

शाम ढले - -

ग़ैर मुन्तज़िर बारिश की तरह, शाम 
ढले भिगो जाता है कोई दिल 
की दुनिया, महक उठते 
हैं सभी वीरां गोशे
ज़िन्दगी के, 
इक इंतज़ार ए ख़्वाब सा उभरता है -
मखमली अँधेरे में दूर तक,
कोई चुपके से दीया
जला जाता हो -
माबद 
ए क़दीम में जैसे, तेरी झुकी निगाह में 
रुकी रहती हैं मेरी सांसें, हथेली 
में बंद जुगनू की मानिंद, 
बिखरने को बेताब
इश्क़ ए जुनूं
मेरा - -

- शांतनु सान्याल
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ग़ैर मुन्तज़िर - अप्रत्याशित 
वीरां गोशे - वीरान कोने 
माबद ए क़दीम - प्राचीन मंदिर 
इश्क़ ए जुनूं - प्रेम की आसक्ति 
midnight-splendor by Rick Lawrence

17 अक्तूबर, 2012

तीरगी ए हिजाब - -

वो तलाश जो ले जाए ख्याली दुनिया से परे,
हक़ीक़त की ज़मीं हो ज़ाहिर जहाँ, दिल 
चाहता है, फिर तीरगी ए हिजाब 
हटाना, चलों देखे ज़रा फिर 
बेनक़ाब ज़िन्दगी को 
बरअक्स आइना,
ये झिझक 
कैसी जो रोकती है, तन्हाई में भी लिबास -
बदलना, न जाने किस की निगाह है 
खुली रात दिन, न जाने कौन है, 
दर दाख़िल ओ ख़ारिज 
मुसलसल मौजूद, 
चाहता है, हर 
वक़्त, ज़मीर को मुक्कमल बदलना, राह ए 
उजागर की जानिब बढ़ना, ख़ुद को 
पाक इशराक़ से भरना - - 

- शांतनु सान्याल 
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तीरगी ए हिजाब - अंधकार का पर्दा 
दर दाख़िल ओ ख़ारिज - अन्दर और बाहर 
पाक इशराक़ - पवित्र दीप्ती 
Oil Painting by Marina Petro 1

14 अक्तूबर, 2012

सबर बेइन्तहा - -

वो सरुर जो तेरी नज़र से छलके, छू जाए

कभी अनजाने यूँही मेरी ज़िन्दगी को, 
हूँ आज भी लिए दिल में सबर 
बेइन्तहा, दे जाए कोई
नूर ए उम्मीद इस 
ग़म अफज़ा 
ज़िन्दगी को, वो रुकी रुकी सी बात, जो -
लब तलक आ के, ख़ामोश बिखर 
जाए अक्सर, कभी तो खुले 
राज़ ए उल्फ़त गुमशुदा,
इक बूंद तो मिले,
प्यासी मेरी 
ज़िन्दगी को - - 

- शांतनु सान्याल

सरुर - ख़ुशी 
 सबर  बेइन्तहा - अंतहीन धैर्य


10 अक्तूबर, 2012

न जाने क्यूँ - -

बाद ए नसीम बहे मुद्दत गुज़र गए,
कहीं से आए फिर मन्नतों की 
सुबह, फिर खिले ख़ुश्क
फूल, कुछ इस तरह 
से मुड़ गए सभी 
अब्र मर्तूब, 
गोया पहचानते भी न हों बियाबां -
क़दीम, कोई भटके राह ए 
गर्द आलूद, कोई वली
अहद, क्या ख़ूब
है नसीब
ए तक़सीम, उसकी नज़र में जब
हैं सभी यकसां, न जाने क्यूँ 
है फिर फ़र्क ज़माने की 
नज़र में इतना - -

- शांतनु सान्याल 
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बाद ए नसीम - सुबह की हवा 
अब्र मर्तूब - सजल बादल 
क़दीम - प्राचीन 
वली अहद - राजा 

by artes.sn 

06 अक्तूबर, 2012

इक ख़ालीपन - -

दूर तक फैला रहा इक ख़ालीपन, वो क्या 
गए, ख़ला में भटकती रही ज़िन्दगी,
वीरां से हैं कहकशां के किनारे,
चाँद मद्धम सा, बेरौनक
से सितारे, इक 
आग अन -
बुझी 
सी, यूँ सुलगती रही ज़िन्दगी, उतरती है 
रात बदन ख़स्ता, कोह शोलावर 
से, अहसास ज़ख़्मी, कभी 
जलती कभी बुझती 
रही ज़िन्दगी, 
न पूछ 
किस तरह से सांसों ने की हमसे बेवफ़ाई, 
कभी सहरा, कभी संग ख़ारदार 
हर लम्हा उलझती रही 
ज़िन्दगी - - 

- शांतनु सान्याल
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 कोह शोलावर - जलते पहाड़ 
 संग ख़ारदार - नुकीले चट्टान 
art by Le Dernier Homme

04 अक्तूबर, 2012

जां से गुज़र जाने की ज़िद !

कोहरा ए फ़जर थी उसकी चाहत, भटकता
रहा उम्र भर, कभी बनके शबनमी बूंदें 
वो टपकता रहा दिल में, नाज़ुक 
बर्ग की मानिंद, जज़्बात 
लरज़ते रहे बारहा, 
कभी ग़ाफ़िल
कभी 
मेहरबां ज़रूरत से ज़ियादा, तखैल से परे 
है उसकी ख़तीर मुहोब्बत, हर क़दम 
इक तूफ़ान ग़ैर मुंतज़िर, हर 
लम्हा नादीद क़यामत,
हर साँस नयी 
ज़िन्दगी !
अमकां हर पल जां से गुज़र जाने की ज़िद !

- शांतनु सान्याल
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फ़जर - भोर
बर्ग - पत्ता 
ग़ाफ़िल - बेपरवाह 
तखैल - कल्पना
ख़तीर - ख़तरनाक 
मुंतज़िर - प्रत्याशित 
अमकां - आशंका
Toni Grote Spiritual Art 

03 अक्तूबर, 2012

जलसा ए नजूम - -

शाम ए चिराग़ जले हैं अभी अभी, न देख यूँ 
डूबती नज़रों से, कहीं मिस्बाह हयात 
बुझ न जाए, सितारों की बज़्म है 
अभी तलक बिखरी बिखरी,
जलसा ए नजूम  में 
कहीं मेरा इश्क़
गुम हो  न 
जाए,
फिज़ाओं में है इक अजीब सा ख़लूस छाया
हुआ, हर सिम्त जैसे उठ चले हों 
धुंध आतफ़ी, न कर रुसवा 
मासूम दिल को इस 
क़दर कि नाबद
हसरत कहीं 
ढह न 
जाए, बड़ी मुश्किल से हैं मिले किश्तियों को 
किनारे, इस बेरुख़ी से कहीं नाज़ुक 
जज़्बात बह न जाए - -  

- शांतनु सान्याल 

मिस्बाह हयात - चिराग़ ज़िन्दगी 
बज़्म - महफ़िल 
जलसा ए नजूम - सितारों का जमाव 
ख़लूस - शुद्धता 
आतफ़ी - जज़्बाती 
नाबद - मंदिर
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celestial beauty 2 

02 अक्तूबर, 2012

उफ़क़ के नज़दीक - -


मुन्नवर किस नूर से है दिल की ज़मीं 
कौन दे गया अचानक, तजदीद 
हयात आज की रात, फिर 
लौट आ रही हैं खोयी 
हुई सदाएं ! न 
जाने 
कौन रख गया दहलीज़ पर गुल -
शबाना, महक चले हैं दिल 
ओ ज़मीर बातरतीब,
फिर ज़िन्दगी में 
है ताज़गी
रवां !
फिर करवटें लेता मेरा रूठा नसीब !  
फिर सुबह उभरने को है 
बेताब, कोई है खड़ा 
उफ़क़ के बहोत 
क़रीब, ले 
हाथों 
में रौशनी बेशुमार, फिर आने को है 
बहार - - 

- शांतनु सान्याल
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मुन्नवर - रौशन 
तजदीद हयात - पुनर्जन्म 
गुल शबाना - रात के फूल 
उफ़क़ - क्षितिज 
feelings 

01 अक्तूबर, 2012

शख्स बेरुनी - -

रख भी जाओ कोई ख़्वाब, सल्फ़शुदा आँखों 
में इस तरह, कि सुलगते जज़्बात को 
ज़रा आराम मिले, हूँ मैं अपने ही
शहर में शख्स बेरुनी, कोई
खिड़की तो खुले कहीं से,
भटकती रूह को 
पल दो पल 
एहतराम
मिले,
लिए फिरता हूँ सदियों से सीने में लटकाए - 
तस्लीम की आरज़ू, छू लूँ कभी तो 
महकती चांदनी को, कहीं से 
किसी तरह इक दहलीज़
ए गाम तो मिले,
ये चाहत है 
या कोई 
ख़ामोश दहन, रात ढलने से क़बल जिस्म 
ओ जां को मंजिल ए अंजाम मिले !

- शांतनु सान्याल
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 सल्फ़शुदा - थके हुए 
शख्स बेरुनी - विदेशी
एहतराम - इज्ज़त
तस्लीम - पहचान
गाम - क़दम
क़बल - पहले


stranger fog 

30 सितंबर, 2012

नाआशना दस्तक - -

नीम शब ओ नाआशना दस्तक, दहलीज़ 
पर रख जाए यूँ कोई ख़ुश्बू ए लिम्स
के निशां नाज़ुक, बेख़ुदी में उठ 
चले हैं क़दम यूँ डगमगाए 
हुए कहाँ ज़मीं की 
सतह और 
कहाँ से 
इब्तदा ए आसमां, इक वहम पुरअसर, दूर 
तक बिखरी है नूर ए माहताब या 
किसी की मस्त मैशूद आँखों 
से हैं, बह चले  रौशनी के
आबशार, हर सिम्त 
है जवां ज़िन्दगी,
हर तरफ़ 
छाया हुआ, तिलस्मी ख़ुमार ही ख़ुमार - - - 

- शांतनु सान्याल 
नीम शब - मध्यरात्री 
नाआशना - अनजाना 
लिम्स - स्पर्श 
इब्तदा - शुरुआत 
वहम - भ्रान्ति 
मस्त मैशूद - मदहोश 
आबशार - झरना 
तिलस्मी ख़ुमार - जादुई नशा 
painting by Angela Treat Lyon

29 सितंबर, 2012

कोई ख़ानाबदोश - -

साहिल का दर्द रहा इब्दी ख़ामोश, मौज थे 
या कोई ख़ानाबदोश, आए लहराके यूँ 
कि दामन बचाना था मुश्किल, 
भीगी पलकों से सिर्फ़ हम 
देखते रहे, उनका यूँ 
लौट जाना मझ -
धार में, 
तोड़ गया सभी, ज़रीफ़ जज़्बाती किनारे,
शफ़क़ के धुंधलके में डूबता उभरता 
रहा, माहताब ए इश्क़ मेरा बार 
बार, बग़ैर सुख़न सिर्फ़ 
हम उन्हें देखते 
रहे, किस 
तलातुम में गुज़री रात, किसे क्या बताएं,
राह आतिश कामिल और पा बरहना,
न जाने किस की जानिब यूँ 
मदहोश हम गुज़रते 
रहे, तमाम रात 
कभी जिए
और कभी हम मुसलसल मरते रहे - - - - 

- शांतनु सान्याल 

इब्दी -    अनंत
ख़ानाबदोश - बंजारे
ज़रीफ़ - नाज़ुक
शफ़क़ - गोधूलि
माहताब - चाँद
सुख़न - बात
तलातुम - अशांति
कामिल - पूर्ण
पा बरहना -नंगे पैर

artist Joyce Ortner

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