04 जून, 2023

चाँद निकलने से पहले - -

जीवन है उन्मुक्त शारदीय आकाश, भर
चली है साँझ जमुनिया अहसास,
ह्रदय वृंत में सजाओ फिर
कोई निशि पुष्प, न
रहो यूँ मौन
तलाशती हैं तुम्हें किसी की नम आँखें,
रोक लो ज़रा, भीगे मोतियों को
बिखरने से पहले, किसे
ख़बर, ये  क़ीमती
पल फिर मिले
न मिले,
जाग चली है रात मोम के शिखर पर यूँ
लहराकर, उड़ चली हों जैसे रंगीन
तितलियाँ पंखों में समेटे
निशिगंधा की सुरभि,
न रहो सीमान्त
की तरह
उदास,
कंटीली झाड़ियों में उलझ कर, कि मैंने
बड़ी चाहत से देखा है तुम्हें शाम
ढलते, ज़िन्दगी मुख़ातिब
है तुमसे, खोल भी दो
बंद दरवाज़े,
घाटियों में
जाएँ -
बिखर घनीभूत कोहरे की परतें, इक
मुद्दत से खिलने की आरज़ू लिए
बैठें है अविकसित केशर
की कोंपलें, मृग
नाभि में
हैं
बेचैन से सभी अर्ध सुप्त कस्तूरी कण !

- शांतनु सान्याल





4 टिप्‍पणियां:

  1. तलाशती हैं तुम्हें किसी की नम आँखें,
    रोक लो ज़रा, भीगे मोतियों को
    बिखरने से पहले,
    वाह!!!
    बेहतरीन सृजन।

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  2. बहुत सुन्दर शब्दों में कोमल भाव। शब्दों को आपने बहुत कलात्मक रूप से सजाया है लेकिन तारतम्य कहीं कहीं टूट गया लगता है। बहरहाल कविता है बहुत खूबसूरत

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