31 अगस्त, 2011

न कर तलाश - -


न कर तलाश मुझे 
ज़िन्दगी ढूँढती है 
अर्श से फ़र्श तलक मुसलसल 
की मेरा वजूद बिखरा है 
बेतरतीब, किसी की मजबूरियों 
में हूँ शामिल, बेचता हूँ
 जिस्म ओ जां, जीने के लिए,
क़र्ज़ में डूबे हैं खेत 
ओ खलिहान, पलायन है -
मेरी नियति, माथे 
पर खुदे हैं, अभिशापित लकीरें 
हर पल ठगे जाना,
हर क्षण जीना मरना, इसके 
सिवा कुछ भी नहीं मेरे 
पास, लौट जाओ भी -
इस धूलभरी राहों में तुम चल न 
सकोगे, ये राह नहीं आसां,
नदी पार, पगडंडियों से निकल, 
ईंट भट्टों में कहीं, आगे ज़रा बढ़ कर 
दाह घाटों में बिखरे फूलों में 
छुपे चंद सिक्कों में 
कहीं, संकरी गलियों से उठते धुएँ -
के ओट में, थके हुए बचपन में कहीं, 
चाय की दूकान के सामने, पंचर 
सुधारते नन्हीं उँगलियों में 
कहीं, पान की पीक भरे 
नुक्कड़ की वो दीवार, जिसमें किसी 
ने लिखा था," वो सुबह ज़रूर आएगी",
उसी दिवार से ढहते हुए 
प्लास्तरों के टुकड़ों में कहीं,
बिखरा पड़ा है 
अस्तित्व मेरा, ये ज़िन्दगी 
नाहक है तलाश तेरा, कि कब से मैं 
हूँ गुमशुदा ज़माने की भीड़ में !
* * - - शांतनु सान्याल 



26 अगस्त, 2011

नंगे पांव आओ ज़रा चल के - -


ग़ज़ल 

कोई  शीशा ऐ ख़्वाब नहीं, जैसा चाहा खेल गए 
जिस्म है ये काँटों से सजा, रुको ज़रा संभल के,

हिक़ारत, नफ़रत, आग के शोलों में ढला हूँ  मैं
आसपास भी हैं ज़िन्दगी,  देखो ज़रा निकल के,

बंद घरों  की खिड़कियों से, है दूर जलता चमन 
बच्चों की मानिंद फिर भी, खेलो ज़रा मचल के,

इन लहरों में उठती हैं हार ओ जीत की तस्वीरें 
किसी दिन के लिए यूँ दिल, देखो ज़रा बदल के,

समंदर का खारापन,साहिल को अपना न सका
नदी की मिठास में कभी ख़ुद, देखो ज़रा ढल के,

कुंदन हो या हीरे की चुभन, मुझे मालूम नहीं -
भीगी निगाहों से तो कभी, देखो ज़रा पिघल के,

मंदिर मस्जिद तक, क्यूँ सिर्फ़ है तुम्हारी मंजिल !
क़रीब है ज़िन्दगी, नंगे पांव, आओ ज़रा चल के, 

-- शांतनु सान्याल 


24 अगस्त, 2011

ग़ज़ल - - शैलाबे जुनूं

अट्टहास के बीच ज़िन्दगी बेलिबास खड़ी
वक़्त की मेहरबानियाँ भी कुछ कम नहीं,

खींच लो जितना चाहों सांसों की रफ़्तार -
मज़िल पे कभी तुम और कभी हम नहीं,

इस दौर में हर कोई, खुद से है मुख़ातिब 
आइना  ख़ामोश, कि मुझे भी शरम नहीं,

बाँध लो निगाहों में पट्टियाँ ये रहनुमाओं
जान के भूली है राहें, मेरा कोई वहम नहीं,

मालूम है मुझे ज़माने की रस्मे वफ़ादारी
दौलत पे निगूँ सर, इनका कोई धरम नहीं,

वो फिर बनेगे शहंशाह लूट कर सारा शहर
करो राजतिलक, रोके कोई वो क़सम नहीं,

इस तरह जीने की आदत मुझे रास नहीं -
ये ज़हर है  मीठा, ये इलाजे  मलहम  नहीं,

उठो भी आसमानों से दहकते शक्ले तूफां
थाम ले  शैलाबे जुनूं, किसी में वो दम नहीं.

-- शांतनु सान्याल

  

23 अगस्त, 2011

ग़ज़ल - - निज़ात

तारों भरा ये शामियाना, रात सजी दुल्हन -

ज़िन्दगी चाहे निज़ात, फिर वही चिर दहन,

नदी से उठे धुंआ, बेचैन क़श्ती, रूह बेक़रार 
डूबती उभरती लहरें,फिर वही अधीर थकन,

रुके ज़रूर वादियों में, मुड़ के देखा भी हमें - 
न बढे क़दम, घेरती रही यूँ दिल की उलझन,

कोई  साया अंधेरों में भटकता रहा रात भर -
बंद दरवाज़े, दस्तक न दे सका, ये मेरा मन, 

वीरां सड़कों से कौन गुज़रा लहूलुहान पांव
जिस्म पे बिखरे दाग़, अनबुझ है वो जलन,

ख़ुद को समेटता हूँ, मैं मुसलसल ज़िन्दगी
क्या हुआ  कि वो तमाम मस्सरतें हैं,  रेहन 

सुबह की रौशनी में न देख यूँ  ज़माना  मुझे
मीलों लम्बी तीरगी से चुरा लाया हूँ ये बदन,

-- शांतनु सान्याल  
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/


  

22 अगस्त, 2011

ग़ज़ल - - ओझल हो गए

उड़ते  पुल  से वो गुज़रे, सफ़ेद  बादलों की  तरह 
नज़र  भी आये ज़रा  ज़रा, फिर  ओझल  हो गए,

ज़िन्दगी  तकती  रही,  इशारों  की  वो बत्तियां,
रिश्ते  सभी  यूँ निगाहों  से बहते काजल हो गए,

अपनापन, फुटपाथ, पुरानी  किताबों  की  दुकान
छू  न  सका, कि  इश्क़  आसमानी आँचल हो गए,

वो हँसे या आंसू बहाए, कुछ  भी फ़र्क नहीं पड़ता,
चाहने वाले न जाने  कब,कहाँ, क्यूँ  पागल हो गए,

गुफाओं में था कहीं गुम, वो  ख़ुद को यूँ मिटाए हुए
 रेशमी धागों के ख़्वाब सभी मकड़ी के जाल हो गए,

न  दे सदा  कि गूँज तेरी  उभर कर बिखर जायेगी
ज़िन्दगी के हसीन पल, पिघल कर बादल हो गए,

लोग कहते हैं, मुझे बर्बाद इक दर्दे अफ़साना, कहें
हमराहे तूफ़ान, जज़्बात सभी संगे साहिल हो गए !

-- शांतनु सान्याल 

painting by ananta 2010
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20 अगस्त, 2011

देखा है तुम्हें करीब से

देखा है तुम्हें करीब से

ज़िन्दगी को तुमने देखा हो जिस तरह भी
दो पल का साथ मगर मुतासिर कर गया, 

यूँ तो चाहत की फ़ेहरिस्त थी बहोत लम्बी
अपलक आँखों से वो सब ज़ाहिर कर गया,

उस मोड़ पे जा कर बिखर जाते हैं, रास्ते -
 दर्द को सहने के लिए  वो माहिर कर गया,

मुझसे चाहते हो न जाने क्या खुल के कहो
हूँ महलों में लेकिन दिल यूँ  बेघर कर गया,

उसने क़सम खाई थी, हर क़दम पे मेरे लिए 
न जाने,  क्यूँ आखिर तन्हां सफ़र कर गया,

रिश्तों की भीड़ में, शायद  खो गया हो कहीं,
दर्दे वसीयत लेकिन वो मेरे नज़र कर गया,

-- शांतनु सान्याल

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

painting - Manuela Valenti

زندگی کو تھمنے دیکھا ہو جس طرح بھی 
دو پل کا ساتھ مگر متاثر کر گیا
یوں تو چاہت کی فہرشت تھی بھوت لمبی 
اپلک آنکھوں سے وو سب ظاہر کر گیا 

اس موڈ پی جا کر بکھر جاتے ہیں  راستے 
درد کو سہنے کے لئے وو ماہر کر گیا 

مجھسے چاہتے ہو نہ جانے کیا کھل کے کہو 
ہوں محلوں میں مگر دل بےگھر کر گیا 
اسنے قسم کھایی تھی ہر قدم پی میرے لئے 
نہ جانے آخر کیوں تنہاں سفر کر گیا 

رشتوں کی بھیڑ میں شاید کھو گیا ہو کہیں 
دردے وصیت لیکن وو میرے نظر کر گیا 

شانتانو سانیال -




11 अगस्त, 2011

नज़्म - - सांसों की धूप छांव

वो राहें जो कभी लौट आती नहीं, देखा -
है, तुम्हें ये ज़िन्दगी उसी राह से गुज़रते,
सूखे पत्तों के हमराह, मौसम बदल गए
देखा है, आसमां को अक्सर रंग बदलते,
अहाते के सभी बेल छू चले मुंडेर की ईंट,
उदास अक्श जाने क्यूँ फिर नहीं खिलते,
उनकी हर बात में है,  ख़ुश्बुओं  का गुमां -
उड़ चले बादल, चाह कर भी नहीं बरसते,
सांसों की धूप छांव, उन निगाहों की नमी
छू जाय दिल, वो मिलके भी नहीं मिलते,
चांदनी छिटकी है वादियों में फिर बेशुमार
वो सिमटे हैं इस तरह, कभी नहीं बिखरते,
 
पढ़ जाते हैं सभी राज़े दिल, यूँ निगाहों से, 
लबों से वो, लेकिन कभी कुछ नहीं लिखते,


-- शांतनु सान्याल  

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07 अगस्त, 2011


जाने कहाँ जाएँ 
नजुमे महफ़िल, बज़्मे कहकशां  हो मुबारक 
अँधेरी बस्तियों से गुज़रती हैं मेरी राहें,
उदास, मायूस चेहरे, ग़मज़दा, बेरौनक हयात 
हैं तमाम अह्बाबे जीस्त, सिर्फ़ मेरी चाहें,
उन पहाड़ियों के पार भी बसती है कोई दुनिया 
खिलते हैं ख़ाके गुल, मुस्कुराती हैं कराहें,

टूटे पुल के अहाते रख आया, सभी हर्फ़े मुहोब्बत 
ख़ुदा जाने बेहतर,नसीब कहाँ बहा ले जाए,
वो सायादार दरख़्त, बहारों में शायद फिर खिले !
हम तो चल दिए, तन्हां रास्ता जहाँ ले जाए,
हमें मालूम है लौटती सदाओं की हालत, ये दोस्त 
बिखरने से पहले शायद बादे नसीम उड़ा ले जाए,
-- शांतनु सान्याल  
   
 नजुमे महफ़िल - सितारों  की महफिल   
 बज़्मे कहकशां - आकाश गंगा की महफिल
 अह्बाबे जीस्त, - जिंदगी के दोस्त
 ख़ाके गुल     - राख के फूल
 हर्फ़े मुहोब्बत - प्रेम पत्र
 दरख़्त     - वृक्ष,बादे नसीम - सुबह की हवा
  

05 अगस्त, 2011

वो ख़ुशी

न मिलो मुझसे, न देखो मेरी तरफ
इक धुंध का बादल हूँ बिखर जाऊँगा, 
चट्टान से नीचे दुनिया लगे दिलकश
मोड़ से आगे न जाने किधर जाऊँगा,
दरख्तों में कहीं बसते हैं ढेरों जुगनू  
ज़रा ठहर ज़िन्दगी, मैं फिर आऊंगा,
न बाँध कोई धागा उभरती साँसों को 
दर्द के रिश्तों से न, यूँ  उभर पाऊंगा,
साए की मानिंद मुहोब्बत ठीक नहीं 
पत्तों की तरह इकदिन झर जाऊँगा,
न रोक मेरी राहें कि मंजिल पुकारतीं 
रात से पहले अंधेरों में घिर जाऊँगा,
कुछ भी तो नहीं बाक़ी, कि दे सकूँ -
फिर कभी सही वो ख़ुशी भर जाऊँगा,
-- शांतनु सान्याल 

  

04 अगस्त, 2011

नज़्म - - काग़ज़ के नाव

भीगते काग़ज़ के नाव रुक चले हों
शायद दिल के आँगन में कहीं -
तुमने छुआ है,अभी अभी जज़बात
इक सिहरन सी जगी लहरों में -
कहीं, बह चले  फिर भीगे अल्फाज़,
नन्हें हाथों के वो मिट्टी के बाँध
फिर दे चलें, मासूमियत से आवाज़,
न करो बंद हथेली, बेक़रार बूंदें -
हैं मुद्दत से बिखरने को यूँ भी बेताब,
कहाँ रख आये हँसी के मर्तबान 
खोल भी दो तमाम बंद रोशनदान,
किश्तों में मुस्कराने की अदा न
कर जाये कहीं ये ज़िन्दगी ही बर्बाद,
 
-- शांतनु सान्याल




03 अगस्त, 2011

ज़िन्दगी

बरसी हैं बूंदे रात ढलते, जलता रहा अंजुमन
यूँ तो कई बार छू कर गए वो अब्र, मेरा बदन, 
वो प्यास जो आग को दे गए झुलस नए नए
सदियों की भटकती रूह, है ये अनबुझ अगन,
पंखुड़ियों में  मैंने  लिखी थी शबनमी  ग़ज़ल !
पढ़ तो लिया उसने, न समझ पाया मेरा मन,
सिसकती वादियों में हैं कुछ मुरझाये नर्गिस
पाता हूँ आइने में अक्सर,ये वक़्त तेरी  थकन,
मुस्कराए तो सही, कि मज़ाक है ये चेहरा मेरा -
झूठ ही सही निभाए तो ज़रा,ज़िन्दगी का चलन.
-- शांतनु सान्याल 

01 अगस्त, 2011

ग़ज़ल - - ख़ामोश दस्तक


कोई आहट,जो नींद से कर जाए अनबन -
ख़ामोश दस्तक ने मुझे रात भर सोने न दिया,
वो शख्स जो निगाहों में रखता है ज़िन्दगी
पलकों के उस ख़्वाब ने उम्र भर रोने न दिया,
गहरी साँसों में लिए जीने की वो अदायगी
दिल की क़श्ती को मगर उसने डुबोने न दिया,
दामन में मेरे शिफ़र के सिवा कुछ भी न था
न जाने क्यूँ उसने किसी और का होने न दिया,
दुनिया की सौगातें बाँट न सका किसी को
भरी बरसात में उसने दिल को भिगोने न दिया,
वक़्त के झूले, रिश्तों के मेले, भटकता रहा !
हाथों को थाम मेरे हर लम्हा उसने खोने न दिया,
ख़ामोश दस्तक ने मुझे रात भर सोने न दिया !
-- शांतनु सान्याल
   

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