03 दिसंबर, 2010

धुँध की गहराइयाँ

धुँध की गहराइयाँ या निगाहों का धोखा
लौटतीं सदाओं ने क्यूँ राह मोड़ लिया

उफ़क़ के पार थे वो सभी कांच के ख़्वाब
बर्फ़ के नाज़ुक परतों में हमें छोड़ दिया,

क़दमों के नीचे था आसमां या झील कोई
चाहा दिल से खेला फिर उसे तोड़ दिया,

इक पुल जो सदियों से था हमारे बीच
पलक झपकते उसे कहीं और जोड़ दिया,

सीने में कहीं है इक गुमशुदा नदी
बहती लहरों का रूख़ तुमने मोड़ दिया,

रेत के वो तमाम घर ढह गए शायद
बड़ी बेदर्दी से जिस्त, तुमने मरोड़ दिया,
लौटतीं सदाओं ने क्यूँ राह मोड़ लिया ,

- - शांतनु सान्याल

3 टिप्‍पणियां:

  1. इक पुल जो सदियों से था हमारे बीच
    पलक झपकते उसे कहीं और जोड़ दिया,
    सीने में कहीं है इक गुमशुदा नदी
    बहती लहरों का रूख़ तुमने मोड़ दिया,

    बहुत खूब ...सुन्दर

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  2. दिल की अथाह गहराइयों से सभी मित्रों का धन्यवाद व् मार्गदर्शन की ख्वाहिश, - सस्नेह //

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