03 दिसंबर, 2010

ग़ज़ल - - बरसना है तो बरस जाओ

आसमां है कुछ आज मुंह फुलाए, घने बादलों में रुख छुपाये 
बरसना है तो बरस जाओ भी, थम थम के क़हर गिराया न करो,
लटों में उलझ जाती हैं, उमर खय्याम की ख़ूबसूरत रुबाइयाँ 
कांप से जाये है तुम्हारे लब, घबरा के नज़र मिलाया न करो ,
बिखरना ही है ग़र तो समंदर की तरह साहिल को ज़ब्त करें 
मंझधार से उठे लहर की तरह, करीब आ ठहर जाया न करो,
हमने रस्मे उलफ़त, बड़ी खूबी से निभाया, ईमान की मानिंद
संगसार नहीं ये  सर्द बूंदें, हलकी बारिश में यूँ डर जाया न करो, 
निकलो भी कभी खुले मौसम में, खिलते हुए बहार की तरह,
चिलमन से झांकते हुए जाने जाँ, फूलों में रंग भर जाया न करो,
बरसना है तो बरस जाओ भी, थम थम के क़हर गिराया न करो, 
--- शांतनु सान्याल  

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